अंखियां झूठ ना बोलें
खुद ही दिल का भेद कहें
फिर अपने भेद भी खोलें
अंखियां झूठ ना बोलें
इन पे गुज़री जैसी जैसी
बात करें ये वैसी वैसी
रोते रोते कभी हंसें
कभी हंसते हंसते रो लें
अंखियां झूठ ना बोलें
राज़ छुपाएं जब ये कोई
लगती हैं कुछ खोई खोई
लेकिन पलक झपकते ही
फिर प्यार की राह पे हो लें
अंखियां झूठ ना बोलें
दुनियावी बातों से परे
सब मज़हब और ज़ातों से परे
ग़म और अश्कों के बीच
पलकों और ख्वाबों के बीच
सेज बिछा के सपनों की
फिर थोड़ी को सो लें
अंखियां झूठ ना बोलें
महफुज़ुल रहमान
ईमेल[email protected]